नागरिकों, या कहूँ सिटिज़न,
मैं यहाँ पर प्रकृति माँ और तुम्हारे जनतंत्र के ज्ञानी और त्यागी संस्थापकों की ओर से आया हूँ।
तुम्हारी यह समझ कि चूँकि तुमने एक सरकार बिठा दी है, इसलिए तुम्हारी सुरक्षा और भविष्य की चिंता उस पर है, और तुम अपनी रोज़मर्रा में उलझे रह सकते हो, सर्वथा ग़लत है।
तुम्हें नागरिक में से Actiजन® या कहूँ नागरिक में से जागरिक बनना ही पड़ेगा
तुम्हें जागरूक, जानकर और कर्मठ होना ही पड़ेगा। अगर तुम सच में अपना आज और कल, दोनों सुरक्षित करना चाहते हो तो और अपनी सरकार के साथ जहां ज़रूरत पड़ जाय, काम करना ही पड़ेगा।
आज कल पृथ्वी पर एक नारा सुनता हूँ। पूर्व की ओर देखो। कुछ लोग सोचेंगे – शैतान ढूँढने या साधु! मैं कहता हूँ – भलाई। देखो जापान को!
जापान में सब देशों से अधिक वृद्ध लोग रहते हैं। तुमने सुना होगा कि मैं बूढ़ों पर ज़्यादा भारी पड़ता हूँ और इसीलिए इटली में जहां पर भी काफ़ी वृद्ध हैं, वहाँ मैंने क़हर ढाया है। सर्वथा ग़लत; मैं सोये और कर्तव्यों के प्रति उदासीन लोगों पर भारी पड़ता हूँ। आँकड़ों से यह दिखा सकता हूँ :
इटली- आबादी: क़रीब 6 करोड़, मेरे से ग्रस्त 86000, मृत्यु 9000
जापान आबादी; क़रीब 13 करोड़ , मेरे से ग्रस्त 1400, मृत्यु 17।
(March 28, 2020)
अरे! जापान की बस्ती तो इटली से कहीं अधिक घनी है। मेरे लिए पड़ोस में भी था ।मैं वहाँ पर जब पहुँचा, यह तो जवानी और भी ज़ोर में थी और उन्हें अंदेशा भी नहीं था कि मेरा पदार्पण होने पर क्या करेंगे।
फिर भी मेरा वहाँ पर ज़ोर इतना क्यों नहीं चला ! सोचने वाली बात है। उसका कारण है वहाँ की जनता में तीनों महान गुण, जागरूकता, जानकारी और कर्मठता ! आने वाले दिनों में ये तीन गुण ही निर्धारित करेंगे कि तुम मेरा सामना कैसे करोगे और तुम्हारे जनतंत्र का भाग्य क्या होगा!
जापानी ख़तरों के प्रति सजग रहते हैं। वे विश्व युद्ध हार जाने के बावजूद सम्पन्न हैं, बचत करने वाले हैं और दीर्घजीवी हैं। उन्हें महामारी फैलने का ख़तरा तुरंत समझ में आ गया। उनके समाज में सावधान लोगों का मज़ाक़ नहीं सम्मान किया जाता है।
जापानी समस्या के बारे में जानने लो उत्सुक रहते हैं। जानकर ही अपनी जान बचा सकते हैं! अफ़वाहों से बचना और सही जानकारी जुटाना उनको आता है। गम्भीरता को वे नज़रंदाज़ नहीं करते जैसा कि मैं कुछ देशों में देख रहा हूँ। गम्भीर होना अर्थात् , अपनी बुरी आदतों को रोकना! ना बाबा ना, इससे तो अच्छा है आँखें मूँदे रखो! सरकार को बार बार नहीं कहना पड़ता है कि घर के बाहर समझ कर निकलो या स्वच्छता रखो। वे स्वभाव से ही इतने स्वच्छ रहते हैं कि जापान में कचरे की पेटी ढूँढनी पड़ती है। क्यों? क्योंकि वे कचरा नहींवत करते हैं !
जापानी कर्मठ हैं। जो करना हितकारी है , उसे वे उत्साह से करते हैं और मिल-जुल करते हैं। औरों का सम्मान करना और भरोसेमंद होना वहाँ की सभ्यता है। हर नागरिक या कहें जागरिक, अपना कर्तव्य निभाता है, औरों की मदद करने के लिए तत्पर रहता है। अगर जाना में कोई वस्तु खो जाय तो महीनों बाद भी वापिस मिलने की आशा रहती है। वर्षों बाद भी!
आप लोगों को याद होगा कि कुछ वर्ष पहले प्रकृति माँ ने वहाँ और भी बड़ा तांडव किया था – एक साथ तीन विपदाएँ फुकशिमा पर आन पड़ी थी। सूनामी, भूकम्प और आणविक विष-वर्षा। उस भयानक स्थिति में भी वे शांत और अनुशासित रहे थे। अपने जीवन को जल्द से जल्द सरकार के साथ सहकार करके कैसे वापिस राह पर के आएँ , उसके लिए कटिबद्ध थे। कई देशों ने भविष्यवाणी की थी कि जापानी कई पीढ़ियों तक आणविक विष के शिकार रहेंगे । ऐसा कुछ नहीं हुआ और वे फिर से आगे बढ़ गए। आज के संदर्भ में भी, मैं देखता हूँ कि और देशों से वहाँ सामान्य जीवन शीघ्रतर लौटेगा। यह देखकर आनंद होता है।
सफलता के नियम सब जगह एक से है हैं। चाहे मेरा सामना करना हो या और परिस्थितियों का – जागरूकता बिना कुछ नहीं हो सकता। चाहे वह अपने स्वास्थ्य की बात हो, या आदतों की, व्यापार की, सम्बन्धों की, या फिर वातावरण की। जागरूक रहना ही है। अपने सामूहिक अधिकारों का कोई उल्लंघन ना कर ले उस बात के लिए भी और वैसे ही जिन पर हमने भरोसा कर अपने ऊपर शासन चलाने के लिए सत्ता दी हो, उनके व्यवहार के प्रति।
केवल जागरूक ही नहीं , जो हो रहा है उसके बारे में योग्य जानकारी हासिल किए बिना उचित कदम नहीं उठा सकते। चारों और नयी बातें होती रहती हैं -प्रकृति में, समाज में, व्यापार में, राजनीति में, टेक्नॉलजी में। जागरूक और जानकर हो तो जानोगे कि किस तरह तुम्हारे निजी जीवन की हर जानकारी कोई चुरा रहा है। सरकारी घाटों में किस तरह तुम्हारी खून-पसीने की बचत घाटे में जा रही है, किस तरह तुम्हारे स्वास्थ्य में पशु और अप्राकृतिक आहार द्वारा विष घोला जा रहा है। उधार की महिमा बता कर भविष्य ही अधर में लटकाया जा रहा है और मन को बाहर इतना उलझा कर रिहा जा रहा है कि वह कहीं भीतर जा कर शांति और सत्य को नहीं पा ले ! सोए हुए नागरिक, टीवी का ऐंकर हो या कोई पेशेवर राजनीतिज्ञ आख़िर तुम्हारी समस्याओं की कितनी चिंता करेगा। वह तुम्हें स्वयं ही करनी होगी। जागो और गहरायी से जानो कि सत्य क्या है। नीतियों को अपने अनुकूल बनाओ, और वादे करने वालों से वादे पूरे करवाओ !
और आख़िर तो अपने जीवन की रक्षा की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है और उसके लिए कर्मठ होना होगा। पूरी बुद्धिमानी के साथ। नीतियों का केवल विरोध, खोखला है। जापानी हो या कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति, वे अपने हित में अपनी सरकार के निर्देशों से आगे बढ़कर जीवन जीते हैं। सरकार हो या कोई और, उचित भागीदारी तो करनी है लेकिन उन पर निर्भर नहीं रहना है। सोच कर भविष्य के लिए नयी व्यवस्था रचना, एक आदत बननी चाहिए। ऐसी आदतें बन सकती है, यह जापानी समाज ने दर्शाया है। आज मेरी परीक्षा में भी मुझे यही नज़र आया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि जापानी हर तरह से बेगुनाह हैं। उनको भी माँ दंड देगी ही। मुझे तो केवल उनकी जागरिकता की बात कहनी थी।
अपने अधिकारों का नशा नहीं हो सकता। कुछ भी कहें, कुछ भी करें प्रकृति माँ को स्वीकार्य नहीं है। जो अधिकार संयम की सीमा और कर्तव्यों के साथ भोगे जाते हैं तभी प्रभावी जनतंत्र सम्भव होता है। उन्हीसे समाज आगे बढ़ता है, नयी वस्तुएँ और व्यवस्थाएँ निर्मित होती हैं। स्वच्छंदों का जनतंत्र कुछ ही दिनों का रहेगा , यह मान कर चलो। प्रकृति की हर चीज़ तुम्हारे सुख के लिए है लूट के लिए नहीं। जो इसे मुफ़्त समझ कर लूट रहे हैं , भारी क़ीमत के लिए तैयार रहें। कुछ बड़े बड़े देशों में इन असीमित अधिकारों, और लूट के प्रति का रुख़ देख कर तो और भी क्रोध आता है। उनकी आदतों पर में बुरी तरह प्रहार करके ही रहूँगा। नए नए रूप में आता ही रहूँगा !
मैं यह बताने आया हूँ कि प्रकृति की कोई भी कृति का अपमान या हनन महँगा पड़ेगा। हर जीवन माँ ने बनाया है , उसका हनन कोई नहीं कर सकता। सबको दंड मिलेगा क्योंकि तुम सब उसमें भागी हो, चाहे सक्रिय रूप से या निष्क्रिय रूप से।
इन अधकचरे जनतंत्रों में, जो लोग अपने अधिकारों को सोए सोए भोग रहे हैं, वे नहीं जानते कि उन्हें एक दिन कंगाल, सोता और पिछड़ा छोड़ देनेवाले नेता ही मिलने वाले हैं। जागो और नए जनतंत्र का आग़ाज़ करो जिसमें सच में जागरिकों का राज , जागरिकों द्वारा और जागरिकों के लिए हो।Democracy 2.0- by Actizens, for Actizens, of Actizens.
किन देशों के नागरिक ऐसे जनतंत्र के लायक़ हैं , मैं यही देखने आया हूँ।
अगर तुम सब जागृत , जानकर और कर्मठ हो तो मेरी क्या कोई भी परीक्षा में
सफल ही रहोगे और शानदार भविष्य के अधिकारी। तुम्हारे लिए भी और प्रकृति man के लिय भी ऐसा भविष्य हो, यही निश्चित करने के लिए मैं आया हूँ।
अभी तो में गया नहीं हूँ। जब जाऊँगा तो यह निश्चित मानना कि मैं वापिस आऊँगा , तुम मुझ पहचानोगे या नहीं!
तुम्हारा मित्र,
कोरोना नं 19
आओ हम सब देश अपनायें,
‘चलता है’ को दूर भगायें,
भविष्य बचायें, भाग्य बनाएँ ।